Sunday, 26 August 2012

Guruji's Test - Love to Salvation


Guruji keeps forever testing us and when


all the criterion are attained does one


get to know his unbounded, abundant


and absolute, kripa -- starts with love 


ends at salvation .... where the road to 


quest for life ends. Guruji help us to keep


the focus and track.. 



Jai Guruji..

Saturday, 18 August 2012

साक्षात शिव - साकार रूप गुरूजी



भगवान् सर्व्शाक्तियों के मालिक, सर्व गुणों से संपन्न, हर रंग में व्याप्त, हर जीव में लीन, हमारे रक्षक, प्रतिपालक, अत्यंत अभीष्ट एवं पूजनीय---साकार रूप गुरूजी में हमें प्राप्य हैं. गुरूजी में व्याप्त असीम, अथाह, प्रबल इच्छाशक्ति वह  अटल उर्जा है जो हमें आशीर्वाद (कल्याण रूप) में प्राप्त होती रहती है.  हमारे अत्यंत क्षीण विचारों को गति गुरूजी की इच्छाशक्ति से मिलती है. हमारा उन तक पहुंचना और पहुंचना उनकी प्रबल इच्छाशक्ति का ही परिणाम हैगुरूजी से जुड़ने के बाद हम उन्ही की इच्छाशक्ति में बंधकर उन्ही के बनते जाते हैं क्योंकि गुरूजी नहीं चाहते की उनके द्वार तक पहुँचने के बाद कोई भी दिग्भ्रमित हो जाए और भटक जाए. हमारी इच्छाएं, हमारी वाणी, हमारी सोच, हमारी जीवन शैली उनसे ताब पाती रहती है. यह उनकी अत्यंत कृपा का एक नमूना मात्र है. क्योंकि सही एवं गलत में एक तृण मात्र का फर्क है इसलिए गुरूजी हमें अपनी सोच भी प्रदान करते हैं जिसके द्वारा हम उन्हें समझ पाते हैं

अंततः विवेक बुद्धि के द्वारा वह हमें पूर्ण विश्वास में समझा देते हैं कि धर्म मात्र हमारी सोच है, (आधा सच--आधा झूठ), हम धर्म की कई बातों को पसंद भी करते हैं और नापसंद भी---फिर कर्मकांड से अच्छा है अच्छे कर्म.   

जीवन के सत्य, कर्मठता एवं मानवता पर आधारित,  तथ्यों द्वारा  प्रमाणित एवं अपने और दूसरों के मनों को छू जाने वाली सोच, जो अन्य सभी धर्मों की सोचों को मनों से जोड़ने में कामयाब होती  है---गुरूजी का निराला प्रेम वाला धर्म है. इतनी प्यारी सोच देने वाले हमारे गुरूजी स्वयं ही हमसे बंधकर हमारे सर्वोपरि धर्म एवं रिश्ते भी बन जाते हैं

जय गुरूजी 

Friday, 17 August 2012

गुरूजी - सकारात्मक, नकारात्मक, सृजनात्मक एवं रौद्र रूप

मैंने गुरूजी को एक दिन प्रश्न किया कि जब आपको अपने इष्ट द्वारा अनुभूतियाँ प्राप्त हुईं तब आपने उन्हें कैसे आत्मसात किया. उन्होंने मुझे समझाया कि मैंने अपने इष्ट से जो अनुभूतियाँ प्राप्त क़ी उन्हें मैंने सकारात्मक, नकारात्मक, सृजनात्मक एवं रौद्र रूप में प्रस्तुत किया.

जब भी मैंने उन्हें सकारात्मक, नकारात्मक एवं सृजनात्मक रूप दिखाया तो उन्हें पदार्थों की प्राप्ति हुई, उन्हें अच्छा लगा. उन्होंने मुझे शुक्राने के रूप में पदार्थ भेंट दिए, मुझे साष्टांग प्रणाम किये और मुझे सर आँखों पर रखा. मैंने उनसे कुछ नहीं माँगा. मुझे पदार्थों से कुछ लगाव और ख़ुशी प्राप्त नहीं हुई और मैंने केवल उनके मन के सुंदर भावों की भेंट को अत्यधिक प्रेम से स्वीकार किया.



फिर जब मैंने उन्हें रौद्र रूप दिखलाया तो वह बहुत डरे, उनकी श्रधा डगमगाने लगी, क्रोधित भी हुए, शिकायतें भी कीं और प्रश्न भी बहुत किये. मैंने उन्हें समझाया, आप मुझे गलत ना समझें. नामालूम होने लायक थोड़ी थोड़ी मात्रा में वेदना, संताप, कलह-क्लेश, दर्द इत्यादि लेते रहें. यह आपके जीवन में काम आएगा.

तदुपरांत गुरूजी ने अपनी वेदना की अनुभूति को मुझे दिया.

ऐसा होने के कई महीनों तक मैंने असीम मानसिक तड़प को भोगा. कोई दुःख, ना कोई सुख, ना ही कोई भूख प्यास, आस सम्बन्धी --सब एहसासों से मुक्त--मुझे जग पराया लगने लगा और मुझे जीवन-मुक्ता का सा अनुभव हुआ. मुझे गुरूजी ने अकेलेपन और विषादों से अवगत कराया और शारीरिक विकारों और दर्द का अनुभव कराया. मुझे बहुत दर्द और संताप हुआ. इस दौरान गुरूजी ने अपने आंतरिक स्वर, ताजगी एवं सौहार्द्यता द्वारा, आत्मिक प्रेरणा भी प्रदान की.


यह एहसास आज भी मुझे महसूस है और मैं गुरूजी से पूछती रहती हूँ, "गुरूजी, आपने इस अंतहीन दुःख और वेदना को कैसे वहन किया. मेरे लिए उस दर्द को अकेले सहना बहुत कठिन था " ?

गुरूजी ने बताया कि दुःख एवं सुख दोनों को उन्होंने कल्याण की पूर्ति हेतु आत्मसात किया और सकारात्मक शक्ति के रूप में अर्जित कर सके. उन्होंने बताया मुझे दुःख भी सुख के रूप में प्राप्त हुए जो मैंने सबके कल्याण हेतु प्रयोग किये. आप दुखों को पूर्णरूपेण आत्मसात नहीं कर पाते क्योंकि आपके पास इच्छाएं हैं जो स्वार्थ उत्पन्न करती हैं और आपकी अच्छाई को हर लेती हैं.



गुरूजी ने समझाया जैसे मैंने आपके जीवन को नियमितता प्रदान की वैसे ही मेरे इष्ट ने भी मुझे नियमितता प्रदान की. क्या आप भी लेना चाहते हैं सब. मैं बोल पायी, गुरूजी मुझे आपके सिवाय कुछ नहीं चाहिए. गुरूजी मुस्कुराने लगे.

गुरूजी के द्वारा भेंट की गयी हर अनुभूति में मुझे अमूल्य सुख प्राप्त हुए.


जय गुरूजी