भगवान् सर्व्शाक्तियों के मालिक, सर्व गुणों से संपन्न, हर रंग में व्याप्त, हर जीव में लीन, हमारे रक्षक, प्रतिपालक, अत्यंत अभीष्ट एवं पूजनीय---साकार रूप गुरूजी में हमें प्राप्य हैं. गुरूजी में व्याप्त असीम, अथाह, प्रबल इच्छाशक्ति वह अटल उर्जा है जो हमें आशीर्वाद (कल्याण रूप) में प्राप्त होती रहती है. हमारे अत्यंत क्षीण विचारों को गति गुरूजी की इच्छाशक्ति से मिलती है. हमारा उन तक पहुंचना और न पहुंचना उनकी प्रबल इच्छाशक्ति का ही परिणाम है. गुरूजी से जुड़ने के बाद हम उन्ही की इच्छाशक्ति में बंधकर उन्ही के बनते जाते हैं क्योंकि गुरूजी नहीं चाहते की उनके द्वार तक पहुँचने के बाद कोई भी दिग्भ्रमित हो जाए और भटक जाए. हमारी इच्छाएं, हमारी वाणी, हमारी सोच, हमारी जीवन शैली उनसे ताब पाती रहती है. यह उनकी अत्यंत कृपा का एक नमूना मात्र है. क्योंकि सही एवं गलत में एक तृण मात्र का फर्क है इसलिए गुरूजी हमें अपनी सोच भी प्रदान करते हैं जिसके द्वारा हम उन्हें समझ पाते हैं.
अंततः विवेक बुद्धि के द्वारा वह हमें पूर्ण विश्वास में समझा देते हैं कि धर्म मात्र हमारी सोच है, (आधा सच--आधा झूठ), हम धर्म की कई बातों को पसंद भी करते हैं और नापसंद भी---फिर कर्मकांड से अच्छा है अच्छे कर्म.
जीवन के सत्य, कर्मठता एवं मानवता पर आधारित, तथ्यों द्वारा प्रमाणित एवं अपने और दूसरों के मनों को छू जाने वाली सोच, जो अन्य सभी धर्मों की सोचों को मनों से जोड़ने में कामयाब होती है---गुरूजी का निराला प्रेम वाला धर्म है. इतनी प्यारी सोच देने वाले हमारे गुरूजी स्वयं ही हमसे बंधकर हमारे सर्वोपरि धर्म एवं रिश्ते भी बन जाते हैं.
जय गुरूजी
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