Friday, 17 August 2012

गुरूजी - सकारात्मक, नकारात्मक, सृजनात्मक एवं रौद्र रूप

मैंने गुरूजी को एक दिन प्रश्न किया कि जब आपको अपने इष्ट द्वारा अनुभूतियाँ प्राप्त हुईं तब आपने उन्हें कैसे आत्मसात किया. उन्होंने मुझे समझाया कि मैंने अपने इष्ट से जो अनुभूतियाँ प्राप्त क़ी उन्हें मैंने सकारात्मक, नकारात्मक, सृजनात्मक एवं रौद्र रूप में प्रस्तुत किया.

जब भी मैंने उन्हें सकारात्मक, नकारात्मक एवं सृजनात्मक रूप दिखाया तो उन्हें पदार्थों की प्राप्ति हुई, उन्हें अच्छा लगा. उन्होंने मुझे शुक्राने के रूप में पदार्थ भेंट दिए, मुझे साष्टांग प्रणाम किये और मुझे सर आँखों पर रखा. मैंने उनसे कुछ नहीं माँगा. मुझे पदार्थों से कुछ लगाव और ख़ुशी प्राप्त नहीं हुई और मैंने केवल उनके मन के सुंदर भावों की भेंट को अत्यधिक प्रेम से स्वीकार किया.



फिर जब मैंने उन्हें रौद्र रूप दिखलाया तो वह बहुत डरे, उनकी श्रधा डगमगाने लगी, क्रोधित भी हुए, शिकायतें भी कीं और प्रश्न भी बहुत किये. मैंने उन्हें समझाया, आप मुझे गलत ना समझें. नामालूम होने लायक थोड़ी थोड़ी मात्रा में वेदना, संताप, कलह-क्लेश, दर्द इत्यादि लेते रहें. यह आपके जीवन में काम आएगा.

तदुपरांत गुरूजी ने अपनी वेदना की अनुभूति को मुझे दिया.

ऐसा होने के कई महीनों तक मैंने असीम मानसिक तड़प को भोगा. कोई दुःख, ना कोई सुख, ना ही कोई भूख प्यास, आस सम्बन्धी --सब एहसासों से मुक्त--मुझे जग पराया लगने लगा और मुझे जीवन-मुक्ता का सा अनुभव हुआ. मुझे गुरूजी ने अकेलेपन और विषादों से अवगत कराया और शारीरिक विकारों और दर्द का अनुभव कराया. मुझे बहुत दर्द और संताप हुआ. इस दौरान गुरूजी ने अपने आंतरिक स्वर, ताजगी एवं सौहार्द्यता द्वारा, आत्मिक प्रेरणा भी प्रदान की.


यह एहसास आज भी मुझे महसूस है और मैं गुरूजी से पूछती रहती हूँ, "गुरूजी, आपने इस अंतहीन दुःख और वेदना को कैसे वहन किया. मेरे लिए उस दर्द को अकेले सहना बहुत कठिन था " ?

गुरूजी ने बताया कि दुःख एवं सुख दोनों को उन्होंने कल्याण की पूर्ति हेतु आत्मसात किया और सकारात्मक शक्ति के रूप में अर्जित कर सके. उन्होंने बताया मुझे दुःख भी सुख के रूप में प्राप्त हुए जो मैंने सबके कल्याण हेतु प्रयोग किये. आप दुखों को पूर्णरूपेण आत्मसात नहीं कर पाते क्योंकि आपके पास इच्छाएं हैं जो स्वार्थ उत्पन्न करती हैं और आपकी अच्छाई को हर लेती हैं.



गुरूजी ने समझाया जैसे मैंने आपके जीवन को नियमितता प्रदान की वैसे ही मेरे इष्ट ने भी मुझे नियमितता प्रदान की. क्या आप भी लेना चाहते हैं सब. मैं बोल पायी, गुरूजी मुझे आपके सिवाय कुछ नहीं चाहिए. गुरूजी मुस्कुराने लगे.

गुरूजी के द्वारा भेंट की गयी हर अनुभूति में मुझे अमूल्य सुख प्राप्त हुए.


जय गुरूजी

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