एक शरीर आत्मा से जो भी
प्राप्त कर सकता है वह सब हम गुरूजी से प्राप्त कर सकते हैं और बहुत कुछ भी.
गुरूजी से हमारे आत्मिक सम्बन्ध हैं और गुरूजी हमारी आत्मा हैं तो क्या गम है.
आध्यात्मिक तौर से और
गुरूजी की आज्ञा के अनुरूप भी हमें गुरूजी से मिलने की आज्ञा तभी होती है जब हम
किसी ऐसे दौर से गुज़र रहे होते हैं जिसको हम नहीं बल्कि एक दिव्य शक्ति या गुरु ही
प्रकाशित कर सकता है. गुरूजी बच्चों, बूढों और बीमारों को आने से पहले ही अपनी
कृपा दृष्टी का भास् करा देते थे और उनसे मिलने के लिए मना करते थे. बुद्दी से
परिपक्व व्यक्तियों को गुरूजी बुलाते और उन्हें सुना है, निम्बू की तरह निचोड़ देते
थे. यानी गुरूजी उनकी कठिन परीक्षा लेते
थे. परीक्षा लेने का तात्पर्य यही था कि गुरूजी उनकी निष्ठा और प्रेम का जायजा
लेते और उनके व्यक्तित्व का आकलन करते उनके मुश्किल समय को कटा देते थे.
सांसारिक और दिव्य, कोई भी
ऐसी वस्तु नहीं जो गुरूजी से प्राप्य नहीं. परन्तु किसको क्या और कब प्राप्त होगा,
गुरूजी के हाथ में है.
बल, बुद्धि, आचरण, लेखनी,
मेहर और मुहर सब गुरूजी के हाथों की मैल हैं.
व्याधों से मुक्ति देना
गुरूजी से प्राप्त है.
मन की शांती मिलना गुरूजी
से प्राप्त है
जीवन की उर्जा हमें गुरूजी
से प्राप्त हैं.
खून में रवानी गुरूजी देते
हैं.
बुद्धि में विवेक गुरूजी
भरते हैं
आंखों की नींद गुरूजी देते
हैं
दिव्या सी आभा गुरूजी देते
हैं
शारीर के अंगों में थिरकन
गुरूजी भरते हैं
पदवी, मान गुरूजी दिलाते
हैं.
महल और मकान गुरूजी बनवाते
हैं.
हमारे जीवन का उठान गुरूजी
करते हैं
दुखों को सुखों में गुरूजी
बदलते हैं
हमारी आँखों में ज्योति
गुरूजी भरते हैं
कर्मों को जलाकर नवजीवन
गुरूजी प्रदान करते हैं.
कितना बताऊँ गुरूजी, मेरी
तो शब्दावली भी कम पड़ गयी .... अररे यह शब्दावली भी तो आप ही की है.
आप सब गुरूजी की किताब
“Light of Divinity” अंग्रेजी में और “दिव्य आभा” हिंदी में गुरूजी की कृपा से
प्राप्त कर सकते हैं और गुरूजी के सत्संग पढ़ सकते हैं.
जय गुरूजी.
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